हमें केवल इतिहास के नाम पर पकड़ा दिया गया एक ऐसा झुनझुना जो मात्र दो या तीन लोगों के ही आस पास बजता रहा जिसमे हमने बस यही जाना कि धर्म से न...
हमें केवल इतिहास के नाम पर पकड़ा दिया गया एक ऐसा झुनझुना जो मात्र दो या तीन लोगों के ही आस पास बजता रहा जिसमे हमने बस यही जाना कि धर्म से निरपेक्षता और अहिंसा ही हमारे जीवन का और इतिहास का आधार रहे हैं
जिन वीरों के स्मरण मात्र से ही भुजाएं फाडक उठती हैं , जिनके शौर्य की गाथा भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर ने गई थी . जिनके तलवार के आगे संसार सर झुकाता था , जिनके इतिहास के स्मरण मात्र से शक्ति और ऊर्जा का संचार होता था वो सारे के सारे मूल और जड़ एक सोची और समझी रणनीति के तहत खोदी गयी और हमें केवल इतिहास के नाम पर पकड़ा दिया गया एक ऐसा झुनझुना जो मात्र दो या तीन लोगों के ही आस पास बजता रहा जिसमे हमने बस यही जाना कि धर्म से निरपेक्षता और अहिंसा ही हमारे जीवन का और इतिहास का आधार रहे हैं ..
इस पूरे इतिहास में ऐसे वीरों को एक एक कर के निकाल दिया गया जिनके नाम से कभी विदेश में बैठे बड़े बड़े आक्रान्ता भी हिल जाया करते थे . चाटुकार इतिहासकारों की चाटुकारिता और एक प्रायोजित सोच से चलने वाले कुछ तथाकथित राजनेताओं की साजिश के शिकार उन असंख्य हिन्दू वीरों में से एक हैं राजा कृष्णदेव राय जी जिनका आज अर्थात 8 अगस्त को राज्याभिषेक दिवस है जो आप सभी राष्ट्रभक्तों और धर्म रक्षको को शुभ और मंगलमय हो.
एक के बाद एक लगातार हमले कर विदेशी मुस्लिमों ने भारत के उत्तर में अपनी जड़ें जमा ली थीं. अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को एक बड़ी सेना देकर दक्षिण भारत जीतने के लिए भेजा. 1306 से 1315 ई. तक इसने दक्षिण में भारी विनाश किया. ऐसी विकट परिस्थिति में हरिहर और बुक्का राय नामक दो वीर भाइयों ने 1336 में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की. इन दोनों को बलात् मुसलमान बना लिया गया था, पर माधवाचार्य ने इन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करायी. लगातार युद्धरत रहने के बाद भी यह राज्य विश्व के सर्वाधिक धनी और शक्तिशाली राज्यों में गिना जाता था. इस राज्य के सबसे प्रतापी राजा हुए कृष्णदेव राय. उनका राज्याभिषेक आज अर्थात 8 अगस्त, 1509 को हुआ था.
महाराजा कृष्णदेव राय हिन्दू परम्परा का पोषण करने वाले लोकप्रिय सम्राट थे. उन्होंने अपने राज्य में हिन्दू एकता को बढ़ावा दिया। उनके काल में भ्रमण करने आये विदेशी यात्रियों ने अपने वृत्तान्तों में विजयनगर साम्राज्य की भरपूर प्रशंसा की है. इनमें पुर्तगाली यात्री डोमिंगेज पेइज प्रमुख है. महाराजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्य में आन्तरिक सुधारों को बढ़ावा दिया. शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाकर तथा राजस्व व्यवस्था में सुधार कर उन्होंने राज्य को आर्थिक दृष्टि से सबल और समर्थ बनाया। विदेशी और विधर्मी हमलावरों का संकट राज्य पर सदा बना रहता था, अतः उन्होंने एक विशाल और तीव्रगामी सेना का निर्माण किया. इसमें सात लाख पैदल, 22,000 घुड़सवार और 651 हाथी थे.
महाराजा कृष्णदेव राय को अपने शासनकाल में सबसे पहले बहमनी सुल्तान महमूद शाह के आक्रमण का सामना करना पड़ा. महमूद शाह ने इस युद्ध को 'जेहाद' कह कर सैनिकों में मजहबी उन्माद भर दिया. पर कृष्णदेव राय ने ऐसा भीषण हमला किया कि महमूद शाह और उसकी सेना सिर पर पाँव रखकर भागी. इसके बाद उन्होंने कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के मध्य भाग पर अधिकार कर लिया. महाराजा की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने जीवन में लड़े गये हर युद्ध में विजय प्राप्त की. महमूद शाह की ओर से निश्चिन्त होकर राजा कृष्णदेव राय ने उड़ीसा राज्य को अपने प्रभाव क्षेत्र में लिया और वहाँ के शासक को अपना मित्र बना लिया.1520 में उन्होंने बीजापुर पर आक्रमण कर सुल्तान यूसुफ आदिलशाह को बुरी तरह पराजित किया. उन्होंने गुलबर्गा के मजबूत किले को भी ध्वस्त कर आदिलशाह की कमर तोड़ दी. इन विजयों से सम्पूर्ण दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय और हिन्दू धर्म के शौर्य की धाक जम गयी.
महाराजा के राज्य की सीमाएँ पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अन्तिम छोर तक पहुँच गयी थीं. हिन्द महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे. राजा द्वारा लिखित 'आमुक्त माल्यदा' नामक तेलुगू ग्रन्थ प्रसिद्ध है. राज्य में सर्वत्र शान्ति एवं सुव्यवस्था के कारण व्यापार और कलाओं का वहाँ खूब विकास हुआ. उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मन्दिर तथा हजार मन्दिर (हजार खम्भों वाले मन्दिर) का निर्माण कराया. ऐसे वीर एवं न्यायप्रिय शासक को हम प्रतिदिन एकात्मता स्तोत्र में श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं.
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