पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ दुनिया में सैकड़ों धर्म है लेकिन ईश्वरवादी सिर्फ तीन (हिन्दू, मुस्लिम, ई...
पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
दुनिया में सैकड़ों धर्म है लेकिन ईश्वरवादी सिर्फ तीन (हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई) ही है जो किसी भगवान, अल्लाह, गॉड को परमशक्ति मानकर, उनकी इच्छा से इस दुनिया की उत्पति या विनाश मानता है. मजे की बात है इन तीनों धर्मों में ही अनंत पाखंडों और धार्मिक ढोंगों का समावेश है. अन्धविश्वास पर चल रही श्रृंखला में आज कुरआन से जुड़े अन्धविश्वास (आसमान से उतरी हुई है) के बारे में लिखूंगा लेकिन सबसे पहले ये जान लीजिये कि इस्लाम का उद्भव मुहम्मद द्वारा नहीं बल्कि एक ईरानी राजा के धार्मिक एडवाइजर नोफल द्वारा हुआ था. नोफल ही मुहम्मद को गुफा में ट्रेनिंग देता था और जिसे गुफा से बाहर आने के बाद मुहम्मद आयत बता देता था. इस सब की जानकारी के लिये आप हिस्टोरिकल ऑफ़ सऊदी अरेबिया नाम की पुस्तक (ये सऊदी अरब के इतिहास की आधिकारिक किताब है और आपको नेशनल लाइब्रेरी में मिलना संभावित है) पढ़ें अथवा ईरान के इतिहास को पढ़ें. हालांंकि भारतीय मुस्लिम इसे नकारेंगे और जस्टिफाय करेंगे और शायद कुछ महान अनुयायी अपने संस्कारों का सार्वजनिक प्रदर्शन भी करेंगे लेकिन फिर भी सच तो सच है और उसे झुठलाया नहीं जा सकता. जैसे कि मैं हमेशा कहता हूंं कि सच को दबाया जा सकता है, छुपाया जा सकता है परन्तु मिटाया नहीं जा सकता !
हम बात कर रहे थे कुरआन की, तो साहबानो, दुनिया में 6 प्रकार की कुरान हैं. सभी कुरान एक दूसरे से अलग- अलग हैं और उनकी आयतों की संख्या भी अलग-अलग है और सभी कुरान को मानने वाले एक दूसरे की कुरान को ग़लत कहते हैं. अतः सबसे पहले तो ये निश्चित होना चाहिये कि असली वाली कौन-सी है. उसके बाद हम डिसाइड करेंगे कि वो आसमानी है या इंसानों के द्वारा लिखी हुई है. वे 6 प्रकार की कुरआन निम्नांकित है यथा –
1. कूफी कुरान, आयत 6236
2. बशरी कुरान, आयात 6216
3. शयामि कुरान, आयत 6250
4. मक्की कुरान, आयत 6212
5. ईराकी कुरान, आयत 6214
6. साधारण कुरान (आम कुरान), आयत 6666
अब जब कुरआन ही 6 प्रकार की है तो उसमें वर्णित तथ्य भी 6 प्रकार के होंगे. तो इसका मतलब ये हुआ कि जिस शरिया/शरीयत का मुसलमान हवाला देते हैं, वो भी 6 प्रकार का होगा. और अलग-अलग कुरआन मानने वाले लोग अपने-अपने शरिया को सही और दूसरे को गलत मानते होंगे अर्थात भारत में कथित शरीयत तो झूठी और फालतू ही हो गयी और उसकी कोई वैल्यू नहीं बची. वैसे भी 610 ईस्वी से पहले कोई भी मुसलमान नहीं था (मुहम्मद भी नहीं) और दुनिया के पहले दो मुसलमान अबूबकर और खादिजा बने थे !
ज्ञात रहे मुहम्मद ने कभी भी इस्लाम स्वीकार नहीं किया था सिर्फ आयतें सुनाकर शुरू किया था. और अगर किसी मुस्लिम को इसमें कोई संदेह हो या कोई अपने आपको ज्यादा इस्लामिक बुद्धिजीवी समझता हो तो वो किसी भी इस्लामिक साहित्य में से ऐसा एक भी तथ्य निकाल कर बता दे जिसमें लिखा हो कि मुहम्मद ने कलमा पढ़कर इस्लाम कबूल किया हो.
मुहम्मद का वो चाचा अबू तालिब (जिसने मुहम्मद को पाला था) ने भी इस्लाम स्वीकार नहीं किया और यह तक कहा कि ‘मुझे पता है कि तुम पाखण्ड कर रहे हो.’
अबू तालिब तो छोड़िये हमजा, अब्बास सय्यदा सफिया इन तीन (दो चाचा और एक चाची) को छोड़कर चाचा के परिवार के 14 लोगों में से किसी ने भी मुसलमान बनना मंजूर नहीं किया. इसके अलावा मुहम्मद की 13 बीबियांं और 40 रखैलें मजबूरी के कारण मुसलमान बनीं.
मुहम्मद के चाचा-चाची के वो नाम जिन्होंने न तो इस्लाम स्वीकार किया और न ही मुसलमान बने यथा – अबू तालिब, अबू लहब, जुबैर, मकवान, सफ़र, हारिस, उम्मे हकीम (बैजा), अरूही, अतैका, बर्रा और अमीना इत्यादि था.
(उस समय के पश्चिम के इतिहासकारों ने इस्लाम को एक विश्वस्तरीय लूट अभियान बताया था)
अभी तो बहुत कुछ बाकी है लेकिन इतने में ही यदि किसी मुस्लिम का इस्लाम खतरे में आ गया हो या किसी को बुरा लग रहा हो तो बता देता हूंं कि मैं पोस्ट के अंत में हमेशा ही डिक्लेमर डालता हूंं कि मैं किसी धर्म का विरोधी नहीं मगर उनमे फैले ढोंगों और पाखंडों का खुलासा करता हूंं और अब तो वैसे भी इस्लाम की असलियत दिनों-दिन खुल रही है. जो जितना जल्दी इस्लामिक पाखण्डों को समझ लेगा और पाखंडों से दूर हो जायेगा, उतना उसके लिये अच्छा होगा वरना बांंकियों की तरह अंधविश्वासी का तमगा तो उसके साथ सदैव से लगा ही है.
अब इस्लामिक पाखंडों के कुछ और उदाहरण पढ़िये. यथा – इस्लाम कहता है कि अल्लाह की कोई छवि नहीं है अर्थात वो निराकार है. अगर अल्लाह की कोई इमेज (छवि) नहीं है तो उसने मुहम्मद या जिब्राइल से बात कैसे की ? और कुरान की आयतें कैसे बोली ? या फिर मुहम्मद और जिब्राइल ने अल्लाह को कैसे देखा ?
ऐसा इसलिये क्योंकि मुहम्मद हमेशा नोफल द्वारा रटवायी गयी लाइनें गुफा से बाहर आकर बोल देता था और उसे आयत बता देता था जबकि नोफल ने इस्लाम का आधार बाइबिल से लिया था और बाइबिल यहूदी धर्म पर आधारित है. अतः जो बातें यहूदी और ईसाई धर्म में है वो ले ली गयी लेकिन उनका आपस में कोई कनेक्शन दिखाई न दे इसलिये वो संदर्भ हटाकर इस्लाम बनाया गया. और इसीलिये इस्लाम में ज्यादातर तर्कों के जवाब नहीं हैं. और ईशनिंदा कानून भी इसीलिये लागू किया गया ताकि कोई सवाल न कर सके और जो करे उसे मार दिया जाये अर्थात इस्लाम की कलई न खुले और पाखंडों का सिलसिला यूं ही चलता रहे !
इस्लाम का एक और उदाहरण ‘वती उल मौती’ है और जो मुसलमान इसके बारे में जानते हैं, वो चुप रहेंगे मगर जो नहीं जानते हैं वो अपने संस्कारों का सार्वजनिक प्रदर्शन करेंगे. ‘वती उल मौती’ का अर्थ होता है लाश के साथ संभोग (यहांं ये भी दिमाग में रखे कि ये सिर्फ औरतों की लाशों के साथ किया जाता है ताकि उन्हें जन्नत नसीब हो सके). अर्थात जीते जी तो इस्लाम में औरतों के साथ सबसे ज्यादा दुर्व्यवहार और उनकी स्वतंत्रता पर पाबंदी है ही, मरने के बाद भी बेचारी की लाश तक को भंभोड़ा जाता है (हालांंकि ये सब के साथ नहीं है. मगर बहुत से ऐसे मुर्ख हैं जो ऐसी परम्पराओं को अब भी वहन करते हैं.)
(सुना / पढ़ा तो यहां तक है कि खुद मुहम्मद ने भी अपनी चाची (अबू तालिब की बीवी जिसने मुहम्मद को पाला था) फातिमा को बरजख से बचाने के नाम पर उसके साथ ‘वती उल मौती’ को अंजाम दिया था. इसके बारे में जामीअल सगीर – वाक्य संख्या – 3442 4 – में तफ्शील से लिखा है. मगर ऐसा मैंने किसी भी आधिकारिक इतिहास में नहीं पढ़ा है. अतः इस मुहम्मद वाले तथ्य की सटीकता थोड़ी संदेहास्पद है !)
वैसे ये तथ्य अपनी जगह सही है कि इस्लाम में औरत की कोई हैसियत नहीं है, भले ही इसे ऊपरी तौर पर कोई कितना ही जस्टिफाय करे लेकिन असल में इस्लाम में औरत कनीज (दासी) की तरह मानी गयी है. और मैंने यह भी देखा है कि भीमटो के साथ मिलकर ब्राह्मणों और मनुस्मृति को कोसने वाले मुसलमान (सारे नहीं, इनमें कुछ अपवाद भी हैं) शरीयत में कितना अंधविश्वास करते हैं. और शरीयत के तहत तो खुदा औरतों को हमेशा दोजख में ही भेजेगा. मुझे तो ये कभी समझ नहीं आया कि आखिर मुस्लिम औरतों ने ऐसा क्या पाप कर दिया है कि चाहे वो कुछ भी कर ले, अल्लाह उनको जहन्नुम में ही डालेगा ? (अगर जन्नत जाना है तो ‘वती उल मौती’ के नाम पर अपनी लाश की दुर्गत करवानी पड़ेगी) इन बेचारी औरतों के लिये अल्लाह ये नियम बदलता क्यों नहीं है ?
जीते जी मर्दोंं की दासी बनकर रहे, बुर्के में रहे, बच्चे पैदा करने की मशीन बनी रहे, गैर-मर्दोंं के सामने न जाये, गैर-मर्दोंं से पर्दा करे और अपने मर्द की सभी इच्छाओं (खासकर सेक्स) को पूरा करती रहे, फिर चाहे उसकी इच्छा शामिल हो या न हो, उसका कोई महत्व नहीं. और वो ही मर्द तीन तलाक देकर उसे कभी भी चलता कर देता है. और फिर से मन हो गया तो हलाला के नाम पर उसे गैर-मर्द के साथ सोने पर मजबूर भी करता है, अब इसे पाखंड न कहे तो और क्या कहे ?
एक तरफ तो गैर-मर्द के सामने उसका हाथ और मुंह भी नहीं दीखना चाहिये लेकिन दूसरी तरफ गैर-मर्द के साथ सोने पर ही हलाला होगा. हांं, कुछ लोग हलाला को भी जस्टीफायड करेंगे. लेकिन वे कितना ही जस्टिफाय क्यों न करे लेकिन क्या वे ये साबित करेंगे कि किसी भी औरत के शौहर के अलावा दूसरा कोई भी आदमी उस औरत के लिये गैर-मर्द कैसे नहीं है ? खासकर जिसके साथ हलाला की रस्म अंजाम होती है और जबरन उसे चरित्रहीनता के लिये मजबूर किया जाता है ?
हिन्दुओं की तरह ही मुस्लिमों में भी कट्टर जातिप्रथा है. मुसलमानों में सर्वाधिक संख्या पसमांदा मुसलमानों की है जो कि कुल मुसलमानों का लगभग 80% है, और वे अंसारी, कुरैशी, सैफी, मंसूरी, शक्का, सलमानी, उस्मानी, घोषी गद्दी/गद्दाफी इत्यादि फिरको में बंटे हैं और मुस्लिम एकता की बात करने वाले अशराफ मुस्लिम (धर्म परिवर्तन से पूर्व ब्राम्हण थे) आज मुसलमानों के ठेकेदार हैं. और ये अशराफ़ को छोड़कर दूसरे मुस्लिमों में शादी भी नहींं करते. खासकर अहमदिया मुसलमान (धर्म परिवर्तन से पूर्व निम्नजातियों के दलित और पिछड़े) सबसे निम्न और निकृष्ट माने जाते हैं.
इस्लाम के अनुसार जब बुतपूजा हराम है तो फिर मजारों को क्यों पूजा जाता है ? (कोई अतिबुद्धि जलवा दिखाये उससे पहले उसे बता दूंं कि इस्लाम में बूत की व्याख्या में ये बताया गया है क़ि पत्थर से बना वो आकार जिसमें किसी अन्य की शक्ति मानकर पूजा जाये). अरे बूत और शक्ति भी छोडो, इस्लाम में तो कब्रों का कॉन्सेप्ट ही नहीं है. खुद तुम्हारी ही आसमानी किताब कुरान के अनुसार, ‘जब कोई मरे तो सिर्फ उसे दफनाये न कि उसकी कब्र बनाये अर्थात जमीन खोदे मुर्दे को गाड़े मिटटी डाले और जमीन बराबर करके चले आये’ तो फिर ये कब्रिस्तानों के नाम पर बड़ी-बड़ी जमीने क्यों हथिया रहे हो ? इस्लाम में तो इसे हराम कहा गया है. ये तुम्हारा दोगलापन समझा जाये या फिर धन, जोरू और जमीन की बात में अल्लाह को किसी कोने में बिठा देते हो ? एक और बात अगर इस्लाम में बुत पूजा हराम है तो मक्का के काले पत्थर के सामने क्यों झुकते हैं ? क्या ये इस्लाम के नियम अनुसार बुतपरस्ती नहीं है ?
बहरहाल, बातें और भी है लेकिन फिर किसी दूसरी आलेख में करेंगे. ये आलेख तो सिर्फ इसीलिये लिखी है कि पिछले दो दिनों से कुछ मुर्ख मुस्लिम ज़मज़म वाली पोस्ट को लेकर उधम मचा रहे हैं और मुझे इस्लाम की महानतायें गिनवा रहे हैं. और बता रहे है कि इस्लाम दुनिया में सबसे तेज गति से फैला दीन है. तो मैं उनसे कहना चाहता हूंं कि तेजी से तो सिर्फ छुआछूत की बीमारियांं फैलती है. अथवा प्रदूषण और भ्रष्टाचार जैसी गलत चीज़े फैलती है, तो क्या हर वो चीज जो तेजी से फैलती है ‘वो बढिया ही है’ ऐसा कहना तर्क-संगत होगा ?
एक बात याद रखना – मेरे पास सिर्फ तुम्हारे ही नहीं सारे धर्मोंं के पाखंडों की पोल है और जो ज्यादा उधम मचायेगा उसके धर्म के पाखंडों के बारे में उतना ही ज्यादा लिखूंगा.
अतः उत्पात मचाने के बजाय अपने धर्म के पाखंडों को पहचानों और उसे दूर करने का प्रयत्न करो (कम से कम खुद तो छोड़ ही सकते हो).
नोट : किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है. मैं सभी धर्मोंं की कुरीतियों और रूढ़ियों पर अक्सर मैं ऐसे ही तथ्यपूर्ण चोट करता हूंं इसीलिये बात लोगों के समझ में भी आती है और वे मानते भी हैं कि मैंने सही लिखा है. जो लोग दूसरे धर्मो का मखौल उड़ाते हैं उनसे मैं कहना चाहता हूंं कि मखौल उड़ाने से आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा और आपस की दूरियांं बढ़ेंगी तथा आपसी समझ घटेगी. अतः मूर्खतापूर्ण विरोध करने के बजाय कुछ तथ्यात्मक लिखे.
COMMENTS