राजा के बेटे प्रेम प्रताप सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और संपत्ति को वापस भी कराया। अलीगढ़,संतोष शर्मा। देश को आजाद कराने के लिए ...
अलीगढ़,संतोष शर्मा। देश को आजाद कराने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने वाले जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के इतिहास के जितने पन्ने पलटेंगे, सभी उनके संघर्ष की कहानी से भरे मिलेंगे। देश की खातिर उन्होंने सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, उनके परिवार ने भी बुड़ी मुसीबतें झेलीं। राजा ने जब अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार बनाई तो अंग्र्रेज बौखला गए थे। वे राजा का तो वो कुछ बिगाड़ नहीं पाए, लेकिन उनकी हाथरस रियासत की संपत्ति पर अधिकार जमा लिया और राजा को बेदखल कर दिया। राजा के बेटे प्रेम प्रताप सिंह ने अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई और संपत्ति को वापस भी कराया। अंग्रेजों ने इस शर्त के साथ संपत्ति लौटाई कि राजा का इस पर कोई हक नहीं होगा। देश आजाद होने के बाद इस पर संसद में बहस हुई तब राजा को अपनी संपत्ति पर पुन: अधिकार मिल सका।
अंग्रेजों के खिलाफ चुनौती
राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में एक दिसंबर 1915 को भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। ये वो दौर था जब स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। अंग्र्रेजों ने राजा के परिवार को परेशान करने और राजा पर दबाव डालने के लिए 1923 में राजा महेंद्र प्रताप सेंट्रल एक्ट लाकर उन्हेंं रियासत से बेदखल कर संपत्ति कब्जे में ले ली। राजा के प्रपौत्र चरत प्रताप सिंह के अनुसार अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ राजा के बेटे प्रेम प्रताप ने चुनौती दी और कहा कि हम कहां जाएंगे। इस पर 1924 में अंग्रेज सरकार ने नया आदेश जारी करते हुए परिवार को संपत्ति वापस कर दी। लेकिन राजा का संपत्ति से मालिकाना हक छीन लिया। 1946 में प्रेम प्रताप के निधन के बाद सारे अधिकार उनके बेटे अमर प्रताप को मिल गए। आजादी के बाद राजा अपने देश आए तो उनकी संपत्ति को लेकर 1960 में संसद बैठी और ब्रिटिश सरकार वाली शर्त खत्म करते हुए राजा को संपत्ति पर हक दिलाया। इसके लिए राजा महेंद्र पताप सिंह के नाम से बिल पास हुआ। किसी नागरिक के लिए संसद में पास हुआ यह देश का पहला व्यक्तिगत बिल भी था।
विदेश जाने से भारत लौटने का सफर
राजा दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी थामस कुक के मालिक के साथ बिना पासपोर्ट कंपनी के स्टीमर से इंग्लैड गए। उनके साथ स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के पुत्र हरिचंद्र भी थे। इंग्लैड से राजा जर्मनी गए। वहां से बुडापेस्ट (हंगरी ), टर्की होकर अफगानिस्तान पहुंचे और 1915 में काबुल में भारत के लिए अंतरिम सरकार की घोषणा की। इस सरकार के राष्ट्रपति राजा स्वयं बने और प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला खां को बनाया। बरकतुल्ला खां राष्ट्रीय आंदोलन के बड़े नेता और गदर पार्टी के नेता थे। इसके बाद अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इसी दौरान राजा रूस गए और लेनिन से मुलाकात की। मगर लेनिन से उन्हेंं सहायता नहीं मिली। अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार 1915 से 1919 तक रही। इसके बाद राजा 1946 तक विदेश में रहे। 1946 में लौटे तो कोलकाता हवाई अड्डे पर उनका स्वागत उनकी बेटी भक्ति ने किया। सरदार पटेल की बेटी मणिबेन भी थीं।
जर्मन के पक्ष में लिखे लेख
राजा देहरादून से निर्बल सेवक नामक समाचार पत्र निकालते थे। उसमें उन्होंने जर्मन के पक्ष में लेख लिखे थे। अंग्रेजों को ये लेख भी नहीं पचे। उन्होंने राजा पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया था। इस जुर्माने ने राजा के अंदर देश को आजाद कराने की इच्छा और मजबूत की थी।
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