International Day of the World's Indigenous Peoples: भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम हिस्सों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन...
International Day of the World's Indigenous Peoples: भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम हिस्सों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन-सहन, खानपान, रीति-रिवाज वगैरह आम लोगों से अलग है. समाज की मुख्यधारा से कटे होने के कारण ये पिछड़ गए हैं. इस कारण भारत समेत तमाम देशों में इनके उत्थान के लिए, इन्हें बढ़ावा देने और इनके अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 1994 को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी वर्ष घोषित किया था. इसके बाद से हर साल ये दिन 9 अगस्त को मनाया जाता है. आइए आपको बताते हैं इस दिन से जुड़ी खास बातें.
क्यों पड़ी इस दिन को सेलिब्रेट करने की जरूरतदुनिया के तमाम देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. इनकी भाषाएं, संस्कृति, त्योहार, रीति-रिवाज और पहनावा सबकुछ अलग है. इस कारण ये समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाए हैं. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इनकी संख्या भी समय के साथ घटती जा रही है. आदिवासी लोगों को अपना अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इस जनजाति को संरक्षण और बढ़ावा देने, इनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी दिवस मनाया जाता है.
अमेरिकी आदिवासियों का बड़ा योगदानविश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने में अमरीका के आदिवासियों का बड़ा योगदान है. दरअसल अमेरिका में 12 अक्टूबर को हर साल कोलंबस दिवस मनाया जाता है. वहां के आदिवासियों का मानना था कि कोलंबस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ था. इसलिए कोलंबस दिवस की जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए. इसके लिए 1977 में जेनेवा में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने की मांग की गई. 1989 से आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस दिन को सेलिब्रेट करना शुरू कर दिया. इसके बाद हर साल 12 अक्टूबर को कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने लगे. इसके बाद यूनाइटेड नेशन ने साल 1994 में आधिकारिक रूप से आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाने का ऐलान किया. इस दिन दुनियाभर में संयुक्त राष्ट्र और कई देशों की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन सामूहिक समारोह का आयोजन करते हैं. इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा स्थिति और भविष्य की चुनौतियों को लेकर चर्चा होती है. कई जगहों पर जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं.
भारत में आदिवासी लोगों की बड़ी तादादभारत की बात करें तो यहां मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार आदि तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. मध्य प्रदेश में 46 आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं. एमपी की कुल जनसंख्या के 21 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय के हैं. वहीं झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं. इसके अलावा भी तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.मध्य प्रदेश में गोंड, भील और ओरोन, कोरकू, सहरिया और बैगा जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. गोंड एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी ग्रुप है, जिनकी संख्या 30 लाख से अधिक है. मध्य प्रदेश के अलावा गोंड जनजाति के लोग महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी निवास करते हैं. वहीं में संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहरिया, मुंडा, ओरांव आदि आदिवासी समूह के लोग रहते हैं.
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